मासिक गरिमा

आज हर भारतीय को पिछले ७० सालों के देश के विकास के अनगिनत कीर्तिमान पर गर्व है और इसमें किसी को कोई शक नहीं है की भारत ने विश्व पटल पर अपनी अहम् उपस्थिती दर्ज कराई है किन्तु अन्य विकसित और विकासशील देशों से प्रतिस्पर्धा की दौड़ में और तात्कालिक अनगिनत आवश्यकताओं को पूरा करने की चुनौतियों में हम निश्चित रूप से कुछ बेहद आधारभूत जरुरी आवश्यकताओं पर ज्यादा ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएं जिन पर निश्चित रूप से एक ठोस पहल दशकों पहले हो जानी चाहिए थी, ऐसी ही महिलाओं से जुडी एक बेहद आवश्यक आवश्यकता है ‘माहवारी’ / मासिक चक्र / मासिक धर्म जिसके बारे में आज भी समाज में बात करना निषिद्ध माना जाता है ।

इस निषिद्धता से इस शब्द को निकालकर एक प्राकृतिक आवश्यकता के रूप में स्वीकार्य कराने के लिए AIPC-UP ने एक जागरूकता अभियान पर निकलने का बीड़ा उठाया है जिसका नाम है ‘मेरी पैड यात्रा’

इस यात्रा में आप सभी आमंत्रित हैं जिसका उद्देश्य है:

  1. मासिक चक्र में स्वच्छता पर किशोरियों और महिलाओं के बीच जागरूकता बढ़ाना।
  2. विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में किशोरियों के लिए उच्च गुणवत्ता युक्त सैनिटरी नैपकिन के लिए उपयोग को बढ़ावा देना।
  3. सैनिटरी नैपकिन का पर्यावरण अनुकूल तरीके से सुरक्षित निपटान की जानकारी देना ।

 

नेशनल हेल्थ फॅमिली सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार आज भी भारत की १४ वर्ष से २४ वर्ष की ६२% युवतियां माहवारी के दौरान कपडे का प्रयोग करतीं हैं । जिसमे उत्तर प्रदेश राज्य में यह गैप ८१% का है । हमारी सभी तरक्की झूठी और दिखावा है अगर हम लोगों को उनकी अपनी सामान्य जरुरतो को पूरा कर पाने का आधार न दे पाएं।

माहवारी को लेकर भारत में जागरुकता का अभाव है, जो स्वास्थ्य से संबंधित कई समस्याओं कारण बन सकता है. खासतौर से ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं में इसे लेकर कई तरह की भ्रांतियां देखने को मिलती हैं. ग्रामीण इलाकों में सेनेटरी पैड के इस्तेमाल को ले कर कम जागरूकता है पर इसकी कीमतें भी इसके न प्रयोग करने का कारण हो सकता है, यही वजह है की इस अभियान में हमने पर्यावरण अनुकूल मुफ्त सेनेटरी पैड देने का निर्णय लिया है। ये AIPC-UP की एक कोशिश है उन लाखों करोङो महिलाओं के व्यक्तिगत जीवनस्तर को उठाने और उनको स्वस्थ रखने की ।

क्यों जरुरी है ये यात्रा?

  1. सरकारी स्कूलों में साल भर में लडकियां 50 से 60 दिन सिर्फ मासिक धर्म आने के कारण नहीं आती हैं। इसका एक कारण यह भी है कि आमतौर पर इनके पास सुरक्षित पैड नहीं होते हैं जो इस दौरान ये प्रयोग में ला सकें, इसी डर के कारण अधिकांशतौर पर लड़कियां स्कूल जाने से डर रही हैं।
  2. 90 फीसदी लोग आज भी हमारे समाज में पीरियड्स जैसी अहम बात नहीं करना चाहते हैं। पीरियड्स जितना जरुरी महिला के लिए है उतनी ही आवश्यक पुरुषों के लिए यह जानना है कि अगर महिला को मासिक धर्म नहीं होगें तो ये संसार आगे कैसे बढ़ेगा। आज भी महिलाओं की इस प्राकृतिक प्रक्रिया को छूत और ना जाने किस किस रूप में देखा जा रहा है। आज भी घर में पुरुषो को मासिक धर्म के बार में ना तो बताया जाता है और ना ही वो इसपर बात करना अच्छी बात समझते हैं।
  3. WHO की रिपोर्ट के अनुसार ३६% महिलाएं पैड दुकान से खरीदने में असहजता महसूस करतीं हैं ।

आशा करते हैं हमारी इस छोटी सी कोशिश से न केवल हर महिला दूसरी महिला से बल्कि हर पुरूष महिला से यह कहने में संकोच नहीं करेगा –

शर्म काहे का ये अधिकार तुम्हारा,

हक़ से मांगो पैड तुम्हारा ।

Nagesh Mishra

Chapter Noida

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